छग पीएससी || मुख्य परीक्षा नोट्स || गरीबी एवं बेरोजगारी

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Cgpsc mains notes paper -5


गरीबी का अर्थ :-

गरीबी का मतलब सामान्य अर्थों में अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा ना करने से है ।मूलभूत आवश्कताओं में भोजन , वस्त्र , मकान , शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी सुविधा से पूरा करने में असमर्थ हो तो उसे गरीब की श्रेणी में रखा जाता है।

गरीबी की माप :-

दुनिया भर में गरीबी के मापने के तरीके अलग अलग है । इन मापदंडों के आधार गरीबी को निम्न वर्ग में बाँट सकते है -

1. सापेक्ष गरीबी :- गरीबी इस तरह का माप विकसित देशों में किया जाता है जिसमें प्रति व्यक्ति आय की तुलना की जाती है। सापेक्ष गरीबी में आय की असमानता को मापा जाता है ।
सापेक्ष गरीबी मापने  दो विधियां है -
1. लोरेंज वक्र -
आय को विषमता को मापने की विधि लोरेंज ने दी । इस विधि में लोरेंज ने आय की विषमता को ग्राफ को मदद से समझाया । इन्होंने ने जनसँख्या और आय को ग्राफ  में प्रदर्शित किया , यदि ग्राफ एक सरल रेखा होता है तो आय की विषमता शून्य है , इसे आदर्श स्थिति कहा जाता है । जैसे जैसे ग्राफ वक्राकार होते जाता है , आय की विषमता बढ़ती जाती है।
2.गिनी गुणांक -
गिनी गुणांक , लोरेंज वक्र को गणितीय रूप में प्रदर्शित किया जाता है । गिनी गुणांक सूत्र निम्न है -
गिनी गुणांक = आदर्श स्थिति से लोरेंज वक्र का क्षेत्रफल/ आदर्श स्थिति से कुल क्षेत्रफल
यदि गिनी गुणांक का मान 1 हो तो आय की विषमता सबसे अधिक तथा शून्य हो तो कोई विषमता नहीं है ।
यदि गिनी गुणांक का मान बढ़ते जाता है तो आय की विषमता भी बढ़ते जाता है ।

लोरेंज वक्र एवं गिनी गुणांक समझने के लिए यह वीडियो देख लेवें -



2. निरपेक्ष गरीबी :- जब आर्थिक अवस्था के आधार पर गरीबी मापा जाता है , उसे निरपेक्ष गरीबी कहा जाता है ।भारत में इसी आधार पर गरीबी मापा जाता है  ।
निरपेक्ष गरीबी मापने के आधार -
 1. कैलोरी मापदंड :-  एक व्यक्ति के द्वारा  एक दिन में जितनी ऊर्जा की आवश्कता है , उसे कैलोरी में मापा जाता है । ग्रामीण क्षेत्र में जो प्रतिदिन 2400 कैलोरी और शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी भोजन प्राप्त करने में असमर्थ है , वह गरीबी रेखा के नीचे आएगा ।
2. न्यूनतम उपभोग व्यय :- गरीबी मापन का यह व्यापक मापदंड है , जिसमे शिक्षा , स्वास्थ्य,बुनियादी सरंचना, स्वच्छ वातावरण ,महिलाओं की काम तक पहुँच जैसी मूलभूत आवश्कताओं को जो वंचित हो , वह गरीबी रेखा के नीचे माना जायेगा ।

भारत में गरीबी के कारण :-

1. जनसँख्या का दबाव
2. देश की धीमी विकास दर
3. कृषि का पिछड़ापन
4. सीमित संसाधन
5. निम्न पूंजी निर्माण
6. बेरोजगारी

गरीबी निर्धारण की गठित प्रमुख समितियां :-


  • सर्वप्रथम दादा भाई नॉरोजी ने उनकी किताब पावर्टी रंडी उंब्रिटिश रूल गरीबी का आकलन किया था जो की न्यून्तक आवश्यक्ताओं की पूर्ति से लगाया था ।
  • नीलकांत दांडेकर और वीएम रथ :- गठन - 1971 आधार - कैलोरी पैमाना  ग्रामीण एवं शहरी दोनों के लिए 2250 कैलोरी निर्धारित ।
  • वाई के अलध समिति - गठन -1979 आधार - कैलोरी पैमाना  ग्रामीण - 2400 कैलोरी  शहरी - 2100 कैलोरी 
  • लकड़वाला समिति -  गठन - 1989 रिपोर्ट सौपीं - 1993 आधार - कैलोरी पैमाना । इन्होंने प्रत्येक राज्य के लिए मूल्य स्तर को आधार माना । ग्रामीण क्षेत्र के लिए - कृषि श्रमिकों के लिए उपभोक्ता सूचकांक,  शहरी क्षेत्र के लिए -  औद्योगिक श्रमिकों के उपभोक्ता सूचकांक । 
  • सुरेश तेंदुलकर समिति :-     गठन - 2004 रिपोर्ट सौपीं - 2009  में  । इस समिति ने गरीबी का व्यापक रूप से परिभाषित किया । इन्होंने उपभोग में लाये जा रहे खाद्यानों के अलावा छह बुनियादी आवश्कता शिक्षा , स्वास्थ्य,  बुनियादी संरचना , स्वच्छ वातावरण एवं महिलाओं की काम तथा लाभ तक पहुच को आधार माना । आधार वर्ष 2004-05 मूल्य पर ग्रामीण क्षेत्र के लिए 446.68 रु तथा शहरी क्षेत्र के लिए 578.80 रु मासिक निर्धारित किया । इस आधार पर 2011-12 में 21.9% जबकि 2004-05 में 37.2 % था ।
  • सी. रंगराजन समिति -  इस समिति ने केवल उपभोग के पोषण मूल्य को आधार माना । इसके आधार वर्ष 2011-12 में ग्रामीण - 972 रु और शहरी - 1407 रु मासिक निर्धारित किया ।







बेरोजगारी :-

जब किसी को काम करने की इच्छा होते हुए उसे काम ना मिलना बेरोजगारी कहलाता है ।
भारत में बेरोजगारी की आंकड़े एनएसएसओ के द्वारा जारी किया जाता है ।
ये निम्न प्रकार के होते है -
1. चक्रीय बेरोजगारी :- यदि माँग में कमी हो जाये तो उत्पादन क्षमता में भी हो जाता है , तो इस अवस्था के कारण हुई बेरोजगारी चक्रीय बेरोजगारी कहलाता है ।
2. जनित बेरोजगारी :- जब व्यक्ति एक रोजगार छोड़कर दूसरे रोजगार में जाता है तो इस अवधि में हुए बेरोजगारी को घर्षण बेरोजगारी कहलाता है ।
ये दोनों बेरोजगारी विकसित देशों में पाए जाते है

3. संरचनात्मक बेरोजगारी :- देश में आधारभूत संरचना का निर्माण नहीं होने के कारण जो बेरोजगारी होती है , उसे संरचनात्मक बेरोजगारी कहते है।
4. प्रच्छन्न बेरोजगारी - इसे अदृश्य बेरोजगारी भी कहा जाता है । किसी कार्य में काम करने वालों की संख्या बढ़ने पर भी उत्पादन में वृद्धि नहीं होती ।
5. मौसमी बेरोजगरी - किसी विशेष मौसम में ही रोजगार और शेष समय में बेरोजगार जैसे कृषि में 6 महीना ही काम मिल पाता है , शेष समय बेरोजगार रहते है ।

बेरोजगारी के कारण :-

1. जनसंख्या का दबाव
2. परंपरागत शिक्षा
3. आर्थिक विकास की धीमी दर
4. अकुशल श्रमिक

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