जैव ईंधन (biofuel) - जीव जंतुओं से प्राप्त होने वाले पदार्थों को मूल रूप में या रूपांतरित करके जब ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है तब इसे जैव ईंधन कहते है। जैव ईंधन (biofuel) भविष्य का ईंधन माना जा रहा है। वर्तमान में भी इनका कुछ मात्रा में उपयोग हो रहा है। जैसे - बायोएथेनॉल, बायोडीजल, बायो गैस (गोबर गैस), हाइड्रोजन गैस।
छत्तीसगढ़ में बायोडीजल के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ बायोडीजल विकास प्राधिकरण के गठन 2005 में किया गया है।
1. बायो एथेनॉल - यह एक प्रकार का एल्कोहॉल है जो बड़े पैमाने पर ईंधन के रूप में आसानी से उपयोग किया जा सकता है। कुछ मात्रा में एथेनॉल को पेट्रोल के साथ मिलाकर के कुछ देशों में उपयोग किया जा रहा है। एथेनॉल को 100 प्रतिशत शुद्ध रूप में भी वाहनों में उपयोग किया जा सकता है।
एथेनॉल का उत्पादन किसी भी प्रकार के कार्बोहायड्रेट के किण्वन (fermentation) से किया जा सकता है। फर्मेंटेशन सूक्ष्मजीवों के माध्यम से होता है जैसे - यीस्ट, कुछ एनारोबिक बैक्टीरिया । पौधों से प्राप्त होने वाले किसी भी प्रकार के कार्बोहायड्रेट (शर्करा) जैसे स्टार्च, सेल्यूलोज को शर्करा (sugar) के सरल रूप ग्लूकोस या सुक्रोस में तोड़ लिया जाता है। बाद में सूक्ष्मजीवों के माध्यम से इसमें किण्वन (fermentation) किया जाता है जिसमें एथेनॉल का उत्पादन होता है।
फर्मेंटेशन बड़े बड़े (bioreactor) बायोरिएक्टर में किया जाता है जिसमे उपयुक्त कल्चर माध्यम में सूक्ष्मजीवो की वृद्धि की जाती है । सुक्रोस या ग्लूकोस इनके लिए भोजन का कार्य करता है जिसके अनाक्सी रेस्पिरेशन से एथेनॉल बनता है और सूक्ष्मजीवों के लिए ऊर्जा मिलती है।
2. बायोडीजल (biodiesel) - पौधों तथा जंतुओं से प्राप्त होने वाले तेल (oil) या वसा (fat) में ट्रांसेएस्टरीफिकेशन (transesterification) रिएक्शन से बायोडीजल बनाया जा सकता है। इसकी तकनीकि विकसित की जा चुकी है। हमारे छत्तीसगढ़ राज्य में भी रतनजोत (Jatropha) के तेल से बायोडीजल बनाया जाता है। जिससे गाड़िया भी चलाई जा रही है और हवाई जहाज को ईंधन के रूप में सफलता प्रयोग किया गया है। सामान्य डीजल और पेट्रोल धरती में सीमित मात्रा में है जो कुछ दशकों में खत्म हो जाएंगे। तब बायोडीजल ही ईंधन का स्रोत बनेगा।
बायोडीजल बनाने के लिए तेल को शुद्ध किया जाता है जिससे तेल में उपस्थित दूसरे पदार्थ अलग कर दिए जाते है। फिर तेल को मेथेनॉल और एक उत्प्रेरक केमिकल को मिलाया जाता है। 60 ℃ तापमान पर रिएक्शन कराया जाता है तब तेल से ग्लिसरॉल अलग हो जाता है और फैटी एसिड ऊपर में एक हाइड्रोफोबिक लेयर के रूप में प्राप्त होता है जो बायोडीजल के रूप में उपयोग किया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया 3 चैम्बर में होती है। मिक्सिंग चैम्बर, रिएक्शन चैम्बर और सेपरेशन चैम्बर।
3. बायोगैस (गोबर गैस) - चौपाये पालतू जानवरों के गोबर के सड़ने पर मीथेन जैसी गैसे निकलती है जो ज्वलनशील होती है। इन्हें घरों में खाना पकाने में उपयोग किया जाता है। यह काफी विकसित तकनीकी है जिसका लंबे समय से उपयोग किया जाता रहा है। परंतु प्राकृतिक गैस के खत्म हो जाने पर भविष्य में इसके बड़े पैमाने पर उपयोग की संभावना है।
4. बायो हाइड्रोजन गैस (H2) - यह इको फ्रेंडली ईंधन है। हाइड्रोजन गैस के जलने पर CO2 गैस नही निकलती है क्योंकि इसमें कार्बन नही होता है। इसमे केवल हाइड्रोजन के 2 परमाणु पाए जाते है।
हाइड्रोजन गैस का उत्पादन कुछ जीवाणुओं (bacteria) और शैवालों के द्वारा किया जा सकता है। इन जीवों में हायड्रोजिनेज (hydrogenase) नामक एंजाइम पाया जाता है जो हाइड्रोजन गैस के उत्पादन में जरूरी होता है। हाइड्रोजिनेज एंजाइम एनारोबिक कंडीशन में ही कार्य करता है। शैवाल की एक स्पीशीज (Chlamydomonas reinhardtii) से हाइड्रोजन गैस के उत्पादन की अत्यंत संभावना है। इस पर काफी सारे रिसर्च चल रहे है। इस शैवाल को सुल्फर की कमी वाले कल्चर माध्यम में उगाने पर ये हाइड्रोजन गैस का उत्पादन करने लगता है। क्लैमाइडोमोनास एक कोशिकीय शैवाल है जिसे आसानी से किसी बायोरिएक्टर (bioreactor) में उगाया जा सकता है। हाइड्रोजन गैस का भविष्य में ईंधन के रूप में ज्यादा से ज्यादा उपयोग की संभावना है क्योंकि ये पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुचाता है।